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12-08-2025 Vol 19

30 साल बाद रेप पीड़िता के बेटे ने अपने बलात्कारी पिता से बदला लिया, कहानी दिल छू लेने वाली है।

शाहजहांपुर की एक लड़की, जो 12 साल की उम्र तक अपने गांव की अन्य बच्चियों की तरह ही सामान्य जीवन जी रही थी। स्कूल जाना, खेलना-कूदना, और अपने भविष्य के लिए बड़े सपने देखना उसकी दिनचर्या का हिस्सा था। उसके पिता फौज में थे, और वह खुद भी पुलिस में भर्ती होना चाहती थी। लेकिन उसकी जिंदगी अचानक बदल गई जब गांव के दो दबंग भाइयों, नकी और गुड्डू ने उसकी मासूमियत को रौंद डाला। वे उसे बार-बार अपनी हवस का शिकार बनाते और विरोध करने पर पूरे परिवार को जान से मारने की धमकी देते। गांव में उनकी दादागिरी थी, जिससे वह डर गई और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए चुपचाप सबकुछ सहती रही।

12 साल की उम्र में प्रेग्नेंसी और छुपा दर्द

12 साल की उम्र में वह प्रेग्नेंट हो गई, लेकिन उसे प्रेग्नेंसी के बारे में कुछ पता नहीं था। जब उसके पेट का आकार बढ़ने लगा, तो उसकी बहन को शक हुआ। पूछने पर लड़की ने बताया कि उसे पीरियड्स नहीं हुए। बहन उसे डॉक्टर के पास ले गई, जहां चेकअप के बाद पता चला कि वह गर्भवती है। डॉक्टर ने अबॉर्शन के लिए मना कर दिया क्योंकि उसकी उम्र कम थी और प्रेग्नेंसी का समय ज्यादा हो चुका था। अबॉर्शन से जान का खतरा था। परिवार ने गांव में किसी को भनक न लगे, इसलिए मां ने उसे बहन के ससुराल भेज दिया, जहां दीदी और जीजाजी ने उसका ख्याल रखा।

समाज का डर और झूठ का सहारा

जब वह मां बनी, तो घरवालों ने उससे झूठ बोला कि मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ है। वे उसका भविष्य खराब नहीं करना चाहते थे, इसलिए उसे उसकी संतान से दूर कर दिया। मां ने फिर कभी उसे अपने गांव नहीं जाने दिया। दीदी के घर में ही उसकी शादी तय हुई और वहीं से उसकी विदाई हुई। उसके अतीत की सच्चाई ससुराल वालों से छुपाई गई। कुछ साल सबकुछ ठीक चला, लेकिन बाद में ससुराल वालों को सच्चाई पता चल गई। इसके बाद उसका वहां रहना मुश्किल हो गया। जब हालात बर्दाश्त के बाहर हो गए, तो दीदी ने उसे फिर से अपने घर बुला लिया।

दूसरी बार मां बनना और आत्मनिर्भरता की जंग

ससुराल की यातनाओं से तंग आकर जब वह फिर दीदी के घर आई, तो पता चला कि वह दोबारा मां बनने वाली है। इस बार उसने ठान लिया कि वह असहाय बनकर नहीं जिएगी। दीदी और जीजाजी ने उसका पूरा साथ दिया। बेटे के जन्म के बाद उसने काम करना शुरू किया, खुद को आत्मनिर्भर बनाया और बेटे को पढ़ाया-लिखाया। जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी थी, लेकिन उसका अतीत फिर सामने आ गया।

सच का सामना और बेटे से मुलाकात

सालों बाद उसे बताया गया कि रेप से जन्मा उसका बेटा जिंदा है और उससे मिलना चाहता है। जब वह पहली बार अपने बड़े बेटे से मिली, तो दोनों फूट-फूटकर रोए। उसे डर था कि उसके बेटे ने समाज के कैसे-कैसे ताने सहे होंगे। अब दोनों बेटे उसके साथ रहते हैं। बड़ा बेटा अपनी मां के साथ हुए अन्याय का बदला लेना चाहता था। उसने ठान लिया कि दोषियों को सजा दिलानी ही है।

न्याय की लड़ाई: 30 साल बाद इंसाफ

दो साल तक मां-बेटे ने उन दोषियों को खोजा। यह काम आसान नहीं था, लेकिन बेटे ने हार नहीं मानी। आखिरकार 30 साल बाद वे दोषियों को सजा दिलाने में सफल हुए। यह सिर्फ मां-बेटे की जीत नहीं थी, बल्कि उन सभी बेटियों की जीत थी जिन्हें समाज चुप रहने की सलाह देता है, लोक-लाज के डर से अपनी आवाज दबाने को मजबूर करता है।

समाज के लिए संदेश

इस महिला का कहना है कि बलात्कारियों को मुंह छिपाकर रहना चाहिए, न कि पीड़िताओं को। बेटियों की आवाज दबाना बंद करें। वह नहीं चाहती कि जो उसने सहा, वह किसी भी बेटी को सहना पड़े। सभी माता-पिता से उसकी अपील है कि अपनी बेटियों को उड़ना सिखाएं, किसी के आगे झुकना नहीं सिखाएं।

“ये सिर्फ मेरी या मेरे बेटे की जीत नहीं। उन सभी बेटियों के हक की लड़ाई है, जिन्हें सबकुछ सहते हुए खामोश रहने की हिदायत दी जाती है। लोक-लाज के नाम पर जिन्हें अपना दर्द बयां करने तक का मौका नहीं दिया जाता। मेरा ये मानना है मुंह छिपाकर बलात्कारियों को रहना चहिए। हम अपनी बेटियों की आवाज को क्यों दबा देते हैं। मैं नहीं चाहती कि जो कुछ मैंने सहा वो किसी भी बेटी को सहना पड़े। मेरा सभी माता-पिता से अनुरोध है कि अपनी बेटियों उड़ना सिखाइए, किसी के आगे दबना या झुकना नहीं।”

निष्कर्ष

शाहजहांपुर की इस महिला की कहानी न सिर्फ एक पीड़िता की हिम्मत और संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि यह समाज के लिए एक आईना भी है। यह घटना बताती है कि अत्याचार सहना और चुप रहना समाधान नहीं है, बल्कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ही सच्चा हौसला है। 30 साल बाद मिले इंसाफ ने न सिर्फ मां-बेटे को न्याय दिलाया, बल्कि उन तमाम बेटियों के लिए उम्मीद की किरण भी जगाई, जो आज भी चुप्पी साधे हुए हैं।

Deepak Rawat

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